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कळजुग / राजू सारसर ‘राज’
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मिंदरां-मेड़ियां
धोक लगावन्ता
डेरूं-ढोलां रै ढमकै,
जागण-जम्मां जमावंता
पोंगां-पुजारां सूं बूझतां
अैक सुवाल
‘‘थां इणां री सीखां नैं
क्यूं माटी लोका नैं
भौदूं बणावौ।’’
मिलै हरमेस
अैक ई उथळौ
‘‘थां भण्या हो
गुण्या नीं हो,
थां कांई जाणौं?
धोक लगावौ,
परसाद पावौ,
घरां जावौ।’’
म्हरै इण ज्ञान सूं,
म्हैं आं री आस्था तोड़ां’क
म्हरा दिन?