भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हार-जीत / राजू सारसर ‘राज’
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 29 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
म्हूँ चावूं
कीं नै कीं बोलूं
वैवसथा रो भेद खोलूं
उणी’ज बगत
चाल पड़ै
म्हारै दिल अर दिमाग मांय
एक अण चिन्त्यौ जुद्ध
दिल सजोरौ डरै कोनी
पण दिमाग निजोरौ हामळ भरै कोनी
कुण जीनै, कुण हारै
स्यात ओ ठाह पडै
जे सबद नीसरे बारै।