भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वोपारी / राजू सारसर ‘राज’
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:37, 29 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिवडै री
हाट में
लियां बैठ्यौ है
लाल-पळीतां री
जकी गांठडी
उण रा गा’क ढूंढै
मति भूल पण
गांठ खुलतांई
पै’लापै’ल थानैं ई
बाळ’र कर नाखसी
राख रो ढिगळो
घणां चंट बोपारी।