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सब के लिए / केदारनाथ अग्रवाल

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सब के लिए समर्पण सब कुछ

अपना अहं, पुरातन, नूतन,

जीवन के दिन रात प्रहर क्षण,

आलिंगन, आकर्षण, चुम्बन,

सामूहिक उन्नति के आगे

सामूहिक अष्टांग समर्पण,

अपनी-अपनी भिन्न इकाई का

अब कोई मूल्य न दर्शन ।