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बाहों में बंधी वह / केदारनाथ अग्रवाल
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बाहों में बंधी वह
पुलक से पराजित हुई वह
चुम्बन-चकित
जय में जी उठी वह
पूर्ण-यौवना
मेरी प्रेयसी :
मुझे छोड़
गयी, सूर्य को
खिले कमल का अर्ध चढ़ाने
(रचनाकाल :30 .04.1966)