भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तेरे सपने देखूँ / रसूल हम्ज़ातव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:32, 12 फ़रवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव |अनुवादक=फ़ैज़ अहम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरखा बरसे छत पर, मैं तेरे सपने देखूँ
बर्फ़ गिरे परबत पर, मैं तेरे सपने देखूँ
सुब्‍ह की नील परी, मैं तेरे सपने देखूँ
कोयल धूम मचाए, मैं तेरे सपने देखूँ
आए और उड़ जाए, मैं तेरे सपने देखूँ
बाग़ों में पत्ते महकें, मैं तेरे सपने देखूँ
शबनम के मोती दहकें, मैं तेरे सपने देखूँ
इस प्यार में कोई धोखा है
तू नार नहीं कुछ और है शै
वरना क्यों हर एक समय
मैं तेरे सपने देखूँ