भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिर के अन्दर / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:10, 9 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=आग का आईना / केदारनाथ अग्रवा...)
सिर के अन्दर
शहर पिट गया है
पेट के अन्दर
पुरूष पिट गया है
पाँव हैं
कि पहाड़ के तले दबे हैं
हाथ हैं
कि क़ैद काट रहे हैं ।
(रचनाकाल : 11.03.1968)