भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थांरौ सांच / संजय आचार्य वरुण
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:40, 25 फ़रवरी 2015 का अवतरण
थारी हरेक ने
नापण री कोसिस
घटावै है कद
थारौ खुद रौ
थारी ऊँचाई पर
जावण री
बिना सींग पूंछ री इच्छा
थनै लाय पटकै
ठेठ रसातळ में।
थारी ज्ञान बघारण री
अणमांवती बायड़
थनै दरसावै
परलै दरजै रौ मूरख।
थारी ‘साबू’ बणन री चाल
पड़ै हमेस ऊँधी
अर तू रैय जावै
फगत एक बिलांद।