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थांरौ सांच / संजय आचार्य वरुण

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थारी हरेक ने
नापण री कोसिस
घटावै है कद
थारौ खुद रौ

थारी ऊँचाई पर
जावण री
बिना सींग पूंछ री इच्छा
थनै लाय पटकै
ठेठ रसातळ में।

थारी ज्ञान बघारण री
अणमांवती बायड़
थनै दरसावै
परलै दरजै रौ मूरख।

थारी ‘साबू’ बणन री चाल
पड़ै हमेस ऊँधी
अर तू रैय जावै
फगत एक बिलांद।