भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाणी अर पत्थर / संजय आचार्य वरुण
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 25 फ़रवरी 2015 का अवतरण
जद कदे भी देखूं हूँ
म्हारै गांव री पाळ पर पड़िया
ऊँधा-सीधा
आडा-तिरछा भाठा ने
जिण रौ एक दूजै सूं
कीं रिश्तौ
कोई जुड़ाव
जोयां नीं लाधै।
पाणी री एक बूंद पर
दूजी बंद न्हांखी
दोनूं रिळमिळ’र
बणगी पाणी री
एक नवी बूंद।
कदे कदे सोचूं
पाणी रै टोपै ज्यूं
भाठै ने भी आवतौ
रिळमिळ’र एक हुवणौ तो
कितरौ आछौ हुवतौ।