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अणमणै हुयौ / वासु आचार्य
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कीं टूटग्यौ
की फूटग्यौ-हियै जियै
कीं ठा‘ई नी लागै
मन रा तार 
तार तार हुवता रै
तारा सागै
तार नीं सुळझै
अर नी‘ई उळझ‘र बणै
अकार लैवतौ
कोई गैड़ौ
कोई गीण्डो 
अणमणौ हुयौ
म्हैं जद दैखूं म्हारै मांय 
कोई पेड़
हर्यौ भर्यौ पेड़ 
खड़ो खड़ो‘ई
सूंतीजग्यौ अचाणचक 
अर बणग्यौ ठूंठ
म्हैं उचक‘र हाथ फैरू
म्हारै पूरै डील-माथै
म्हैं जद देखू-म्हारै मांय 
उण्डै और उण्डै
कोई काची कली
डाळ‘सूं झड़‘र बिछगी
बिना चूंकार कियै
अर हुयगी-धूड़ भैळी धूड़
म्हैं झौबा झोब 
अर सैंगमैंग हुयौ ताकू अकास 
अचाणचक 
उठ्यै बतूलियै सूं 
कंपकंपीजण लागै
म्हारो पूरो अस्तित्व
म्हैं संभाळू फैर 
खुदो खुद नै
क म्हैं खड़ो तो हूं - सावळ
अर पगां नै
और काठा कर 
और उण्डा घालणा चाऊ
जमीन मांय
 
	
	

