भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौकळा दिनां पछै / वासु आचार्य

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:08, 28 फ़रवरी 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौकळा दिनां पाछै
कालै-गयौ थो बठीनै

लगै टगै वियार बिया है
बो रेत रो धौरौ
हां-पून रै तैज थपैड़ा सागे
उडी हुवैला जरूर-थोड़ी रेत
अर जमगी हुवैला
दूजी परत

पण इण सूं
कीं फरक नीं पड्यौ
टीबै मांय

आपां जिकै नीमड़ै रै तलै
बैठं-करतां हां बात्यां
बो बियांई है-हर्यौ भर्यौ
बीं रा पत्ता-
बियांई लै‘राय रैया था
पूर रै लैरका सागै
म्हे अेक पल‘ई
थम्यौ सायत्

दैख्यौ चारा खानी
सूरज डूबण‘नै ई थौ

कोई चीलख
कनै रै पड़े माथै
ऊपरी डाळां पत्ता बिचाळै
बैठगी ही फड़फड़ा‘र
आपरै घौंसलै मांय