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सिरकीक दोगे / चन्द्रमणि
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सिरकीक दोगे षिकार कियै कयलें
सोरहे बरिसमे सिंगार कियै कयलें।
रचि-रचि विधाता दुई नैना बनओलनि
बांस केर धनुषा कमान सन
सोनाके रंग बोरि मुखड़ा बनओलनि
मास भरि पूनम के चान सन
मारि वाण नैना बेकार कियै कयलें।।
हँसि-हँसिकऽ बिजुरी अधरसँ खसाबें
हरबें कतेको परान गे
कछमछ उताहुल देखल जे तोरा
घायल तोहर मुसकान गे
तकलें कनडेरिये हरान कियै कयलें
सोरहे बरिसमे सिंगार कियै कयलें
सोरहे बरिसमे सिंगार कियै कयलें।।
छूबि-छूबि आँचर पवन बहि पुरिबा
गम-गम गमकि इतराइये
घुरि कने ताकै रसिक केर हालति
धयने करेज रहि जाइये
मोनमे रहितें उड़ान कियै कयलें
सोरहे बरिसमे सिंगार कियै कयलें।।