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युग के वन्दन / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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युग के वन्दन
नत अभिनन्दन

साँप उहें बा
जहवाँ चन्दन

लोग बढ़त बा
पग-पग क्रन्दन

इज्जत गिरवी
हावी बा धन

कठिन साधना
चंचल जब मन

राम जुबाँ पर
भीतर रावन

कलई लागल
लउके कंचन