भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दण्ड विधान / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:16, 13 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=काल को भी नहीं पता / सुधीर सक्सेन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज




लकदक शो रूम से

धड़धड़ाते हुए निकले हैं ट्रैक्टर

और मेड़ पर दम तोड़ते नज़र आते हैं बैल ।


फ़ैक्टरी से निकलता है

चमचमाती कारों का काफ़िला

और इस तरह अकाल मौत

मारे जाते हैं घोड़े और साईस ।


परिदृश्य से लगातार

लुप्त हो रहे हैं बैल और घोड़े

कहीं भी नहीं उनकी मौत के आँकड़े

और न ही अपराध विज्ञानियों के

माथे पर एक भी शिकन ।


जुर्म है उनकी दिनचर्या में शुमार,

मगर उनके किसी जुर्म के लिए

दण्ड-विधान में दण्ड का नहीं प्रावधान ।