अवकाशहीन पशु / प्रवीण काश्यप
किछु अछि एहन अवश्य,
नहि शान्त भऽ पबैछ भूख!
दुनू शाश्वत भूख।
पेटक भूख, शरीरक भूख
दूनूक निवृति हेतु
प्राणी हेरैत अछि भोजन
खौजेत अछि माँस।
दांत गरेबा लेल,
चिबेबा लेल चाही माँस।
उदरपूत-वासनापूर्ति लेल
आवश्यक अछि माँस।
अपना सँ कोनो लाचार,
कमजोर प्राणीक माँस;
जकर स्वाद लऽ लऽ कऽ
चिबायल जा सकै!
एक देहक अग्नि बढ़ेबा लेल
दोसर ओकर समाधान हेतु।
मनुष्यक जीवन वृत्तक
केन्द्र अछि माँस
कखनहुँ चाही चिबेबा लेल टाँग;
कखनहुँ चाही जाँघ, माँसल जाँघ!
माँसक खोज में मनुष्य
जखन बुझऽ लगैछ
अपन शरीर, मन आत्मा कें
चीन्हऽ लगैछ अपन पशु कें;
तऽ ओ भऽ जाइछ कुकुर
खोजी कुकुर!
खोजऽ लगैछ, चीन्हित करऽ लगैछ
स्थान।
जतऽ उपलब्ध भऽ सकै
ई दुनू तरहक माँस!
मनुष्य की अछि?
माँसक खोज में निरंतर
बिनु अवकाशक, दौड़ैत-भागैत
क्रियाशील पशु अछि।
सभ केओ भुखायल;
सभ केओ पशु!
चिबेबा लेल चाही टाँग;
मर्दन लेल चाही जाँघ।
भूखक आवृति सँ निवृति धरि माँस।
शाश्वत सत्य मृत्यु, भूख ओ माँस।
भूख समाप्त, जीवन समाप्त!