भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी माता / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
Dhirendra Asthana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:01, 5 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरी माता बड़ी निराली।
मुझको देख बजाती ताली।।
आँगन में दौड़ाती मुझको।
हंसती और हंसाती मुझको।।
जाती जहाँ मुझे ले जाती।
नये नये कपड़े पहनाती।।
खेल खिलौना खूब मंगाती।
और कहानी रोज सुनाती।।
मुझे सुलाती मुझे जगाती।
मुझे हिलाती मुझे झुलाती।।
मुझे खिलाती मुझे पिलाती।
छोड़ मुझे वह कहीं न जाती।।
उसका तन मेरा ही तन है।
उसका मन मेरा ही मन है।।
उसका कर मेरा ही कर है।
है वह तो न किसी का डर है।।
मेरा उसका नाता सच्चा।
मैं हूँ उसका प्यारा बच्चा।।