भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:56, 7 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=ग़ज़ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ।
थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ।
चमक मुझमें है पर गर्मी नहीं है,
मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ।
यकीनन संग-दिल भी काट दूँगा,
तो क्या जो बूँद हूँ धारा नहीं हूँ।
सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?
मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ।
मेरी हर बात को अंतिम न मानो,
मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ।
कभी मैं रह न पाऊँगा महल में,
मैं इक झरना हूँ फ़व्वारा नहीं हूँ।
कभी मुझमें उतरकर देख लेना,
समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ।