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लड़कियाँ / किरण मिश्रा

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लडकियाँ हैं तो बचा है
उत्सव, उमंग, गीत
संगीत और थाप ढोलक की ।

लडकियाँ हैं तो बचा है
संस्कार, समाज, रिश्ते
नाते और मर्यादा जीने की ।

लडकियाँ हैं तो बची है
खनक चूड़ियों की
सावन के झूले, मल्हार, कजरी ।

लडकियाँ हैं तो बचे है
भाव, प्यार, अल्लहड़ता
समर्पण ,हँसी, ख़ुशी ।

लडकियाँ हैं तो
लिखी जाएगी फिर कोई ग़ज़ल
बनेगा फिर कही ताजमहल ।

लडकियाँ हैं तो बचेगा
परिवार और बचेगा
माँ का प्यार, दुलार ।

लड़कियों को मारोगे
मारो मारो,
लेकिन याद रखना
जिस दिन हम इंकार करेंगे
तुम्हे इस दुनिया में लाने से
वह दिन क़यामत का दिन होगा ।

हे मनुपुत्रो ! बचाओ स्वयं को ।