भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदलते समय की औरतें / किरण मिश्रा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:16, 13 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पुराने समय की औरते
अपने में खोई हुई
गर्दन झुकी हुई
ख़्वाबों का लबादा ओढ़े हुए
ब्रेक लगी गाड़ी की तरह
अपने ठीए पर हिलती-डुलती
पर अन्दर से स्टार्ट
आज की औरते
विशिष्ट ,सुन्दर
उछाल मारती
तेज रफ़्तार गाड़ी
मन-मुताबिक स्टेशन पाती
गन्तव्य पर पहुँचकर
ख़ाली-ख़ाली
झुलसा देने वाली
मन की धूप के साथ अकेली