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स्व / किरण मिश्रा

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अभी अभी लौटाए हैं मैंने साँसों के आमन्त्रण
तोड़ा है प्रेम के घेरे को
कोई इन्तज़ार नहीं
नहीं चाहिए मुझे कोई देवदूत
मैं अपनी ज्योति और साथी स्वयं हूँ

मैं खीचूँगी एक समान्तर रेखा
जो इतनी गहरी हो जितनी मैं

पर हों हम अकेले अकेले
क्योंकि ये अकेलापन मुझे ले जाएगा मेरे ही अन्दर
और तभी भेद सकूँगी सच और सपने के अन्तर को
ये यात्रा तब तक होगी जब तक शून्य न आ जाए