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नीट आँखों से जब पिलाया कर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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नीट आँखों से जब पिलाया कर।
लब का चखना भी कुछ खिलाया कर।
जान ले लेंगे दो नशे मिल के,
प्यार गाँजे में मत मिलाया कर।
भाँग शरमा के मुँह छिपाती है,
इस कदर भी न खिलखिलाया कर।
जुर्म है बाँटना चरस गोरी,
यूँ न पतली कमर हिलाया कर।
इश्क की लत लगाई तूने ही,
अब न बेकार तिलमिलाया कर।