भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फूल हैं अग्नि के खिले हर सू / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:37, 18 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=ग़ज़ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फूल हैं अग्नि के खिले हर सू।
रौशनी की महक बहे हर सू।
यूँ बिछे आज आइने हर सू।
आसमाँ सी ज़मीं दिखे हर सू।
लौट कर मायके से वो आईं,
दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू।
वो दबे पाँव आज आए हैं,
एक आहट सी दिल सुने हर सू।
दूसरों के तले उजाला कर,
ये अँधेरा भी अब मिटे हर सू।
नाम दीपक का हो रहा ‘सज्जन’,
तन मगर तेल का जले हर सू।