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फूल हैं अग्नि के खिले हर सू / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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फूल हैं अग्नि के खिले हर सू।
रौशनी की महक बहे हर सू।

यूँ बिछे आज आइने हर सू।
आसमाँ सी ज़मीं दिखे हर सू।
 
लौट कर मायके से वो आईं,
दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू।

वो दबे पाँव आज आए हैं,
एक आहट सी दिल सुने हर सू।

दूसरों के तले उजाला कर,
ये अँधेरा भी अब मिटे हर सू।

नाम दीपक का हो रहा ‘सज्जन’,
तन मगर तेल का जले हर सू।