भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय क्षण-भर थमा / अज्ञेय
Kavita Kosh से
समय क्षण-भर थमा सा :
फिर तौल डैने
उड़ गया पंछी क्षितिज की ओर :
मद्धिम लालिमा ढरकी अलक्षित ।
तिरोहित हो चली ही थी कि सहसा
फूट तारे ने कहा : रे समय,
- तू क्या थक गया ?
रात का संगीत फिर
तिरने लगा आकाश में ।