नहाल पर अछि दहला / नरेश कुमार विकल
नहला पर अछि देहला, बौआ बाबू हमरा कहला
पढूं जोर सँ।
माय कें मम्मी, बाप कें डैडी, कक्का, अंकल बाजू
सायरा, हेमा, नन्दा बौआ, राजकपूर कें राजू
सीखू यैह सबक अछि पहिला, फेरो काल्हि पढ़ब अगिला।
प्रेम डोर सँ।
वन-टू-थ्री-फोर-फाइब बौआ! सिक्स पढू आ सेवन
एक्टर आ एक्ट्रेस बनू ओ फिल्म अहाँक अछि हेवुन
बनल छैली सभी अब छैला खोजथि अप्पन-अप्पन लैला
माइक कोर सँ।
माय-बाप दूनू सिखबै छथि-ट्विस्ट आर पियानो
‘झुमका गिरा बरैली’ बेटे बात मेरी ये मानो
कहबै दोसरा कें की अधला हमर नंते छथि अभगला
गावथि जोर सँ।
सत्ता-अठ्ठा-नहला-दहला बीवी आओर गुलाम
एक्का दुग्गी तबला डुग्गी दूरे सँ परनाम
बौआ ! चलू कातिक मेला देखब ‘आयी मिलन की बेला’
अहाँ गौर सँ
स्कूटर पर अपने, पाछाँ मौगी कें बैसोन
आवि रहल मारकेटिंग कऽकऽ सिनेमा कें देखौने
शंकर पेरिस तों चलि गेलाह, देखऽ तोंहूँ अपन चेला
पच्छिम ओर सँ।
ताश खेलू आ खाउ डोसा तंग-चुस्त पयजामा
कंठ-लंगोटा सभी पहिरिने एकरे अछि हंगामा
कतऽ गेल हमर ओ मिथिला बिसरल संस्कृति सभी पछिला
कानी नोर सँ।