भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कदमताळ / गोरधन सिंह शेखावत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 23 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRachn...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हैं खुद कैवूं
तोड़ौ ईं भरोसे रै डूंगर नै
ई रै माथै चढतां-चढतां
गोडां रै मांय
पाणी भरीजगो

आं सबदां रा
अब अरथ पलटो
आंरी स्यांणप सूं
घणी नफरत
हुक्ण लागी
क्यूं कै अै सबद
घणा चालाक हुयगा

अब हरेक री
चरित कथा नै समझणै रौ
बखत नी
खून रै इतिहास नै
काटो
जठै जग थे काट सको
सांची मानो
मत राखो
आं उणियारां सारू हेत
सेवट
चोखौ है आं सूं परै रैवणौ
बडेरां री लीक माथै
चाल’र बड़ा नी बणोला
थे फालतू में
मुरदा भोम रा
नुवां अरथ खोजणो चावो

थानै सांच कैवूं
छेड़ा हटजावो
अळगा-साव-अळगा
कांई थारै
पसीनै में ताव नीं

संकळप नै
धोबा सूं उछाळो
सुरू करो अेक जातरा
बिना पीठ ठोक्यां

म्हैं अब भी कैवूं
आं बारणां-दरूजां सूं
अै पग मोड़ौ
डूंगर री बरोबरी
नीं सही
नाळा रौ खूंखाट
साव आपरो है
पछै नाळो बैवतो
नदी में मिलै या
बिचै सूख जावै

कीं म्हारी बात रौ ई
भरोसो करौ
गैलायां छोेड़ो
सज आवै ज्सूं
घोड़ै सवार हुवौ
म्हैं तो आ ई
कैय सकूं हूं
मत करो कदमताळ
म्हारा भंवर
मत करो कदमताळ
अेक ई ठौड़।