Last modified on 24 अप्रैल 2015, at 22:40

बावड़ा भीड़ सूं / मोहन आलोक

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:40, 24 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन आलोक |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRach...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बावड़ा भीड़ सूं
बस करां
आओ।
मिनख री मोत पर
 हरजस करां।
पेट पग अळगा हुवै जठै
सरम रै सांध पर, कियां-
ई रयोड़ी लीरड़ी-लीरड़ी चीरड़ी नै
सुई तागै सूं सियां।

कुवै में जावती
लाव थामां
भूण रै हाथ द्यां
कीं कस करां।
बावड़ां भीड़ सूं
बस करां
आओ।
मिनख री मोत पर
हरजस करां ।
अओ।
बीं काल री बात री
मुंहकाण द्यां सि धुणां
‘चौखलै’ चमार री
‘स्यान्तड़ी’ साथै
हुये बीं गजब नै गुणां।

हिये पर हाथ राखां
अर
गांव री गांव में हुई
ईं उपर

कीं इमरस करां
बावड़ां भीड़ सूं
बस करां