भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद्मणी / अर्जुनदेव चारण

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:18, 25 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्जुनदेव चारण |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोसै री असवारी
जिणनै परणीजन आवै भरतार
सतरज री गोटियां रै पांण
तै होवै जिणरी जूण
वा आपरी मांग मांय
सिन्दूर नीं
अगन भरिया करै
औ म्हनै जांण लेवणौ चाइजतौ
गोटियां बिछी उण पुळ ई।

जमीन बदळियां
काठ नीं बदळै आपरौ गुण
राज बदळियां
रीस नीं बदळै आपरौ गुमान,
आपरै मरदपणै रै गुमेज
जिण खाया हा फेरा
वो मरद
किण घड़ी होय जावैला निबळौ
औ म्हनै जांण लेवणौ चाइजतौ
उणसूं भेटियां
आवण वाळी पैली सांस रै समचै।

कांई आरसी मांय आयां
उणियारौ होय जावै दूजौ?
कांई आरसी मांय अयां
लुगाई नीं रैवै लुगाई?
म्हैं ही थारौ काच
जिण मांय फगत थूं दीखतौ हौ
पण थूं
नीं जाण सकियौ
इण काच रौ मन
थूं औ काच धर दियौ
दूजा रै सांम्ही।
काच नै काच रै सांम्ही करियां
होवै अेक पळाकौ
उण पळकै री आब
हजारूं बरसां तांई पसरियोड़ी रैवै
बगत री ओरण माथै।
हजारूं ज्वालामुखियां ई
उणरी नीं कर सकै होड
बगत रै पलोतण देय
वा काळस
बटै जका फलका
आवण वाळी पीढियां
उणनै इजियास कैय
चबावती रैवै।

आपरै चारूं कांनी
ऊंचा-ऊंचा परकोआ चुणावण वाळौ
क्यूं नीं जाण सकियौ
औ भेद
कै अेक छोटी-सी बारी
मेट दिया करै
मोटा गढां रौ गुमान,
पछै उण सुल्तान नै
वा बारी थूं क्यूं बताई
थूं थारै गढ रै
जड़वाया लोह कपाट
पण म्हारै झरोखै री बारी
बिना कपाटां क्यूं छोडदी?
खुलै बरणै
घर मांय घुस जाया करै
सांप-बिच्छू-कुत्ता-साड़ियां
चोर धोड़ेती
कांई थूं
नीं जाणतौ हौ आ बात?
थारै सूं भेटियां
खुला गिया म्हारै भाग रा बरणा
म्है मनाया सुगन
हियै कपाट खोल
लेय लिया थनै मांय
अर बन्द कर दिया बाकि सगळा कपाट?

म्हारा छतीस गुण
छतीस जात री लुगायां रै
इसकै री लाय
अर
छतीस जात रै मरदा रै मूंडै
टपकती लाळां सूं बचण
किणरी गवाड़ी जावता?
पाणी सूं बुझाती होवैला
मधरी जोत
आं लळां री छांट
आ लाय सवाई होवती।

ईसर अैडौ रूप किणनै ई नीं देवै
जिणनै देखियां
आंखियां मांय प्रीत नीं
भोग जलमै
जठै लारै छूट जावै
सगळा सम्बोधन
मां, बैन, बेटी, बयली
कांई ठा किण लोक रा
रिस्ता हा
जकां रै परम सूं
मिनख पूरण पद पावतौ हौ
इण देही री परकमा सारूं
उतावळी
मींचीजियोडी आंखियां
आभै रौ अनन्त बिस्तार
कीकर देखती।

म्हनै जांण लेवणौ चाइजतौ
ऊमर रै पगोतिया चढतां
कै रूप री बेलड़ी रा पुहप
फगत बिछावण रै काम इज आया करै
म्हैं किणी रै सिणगार री मंसा
मन में क्यूं धारी।

म्हैं
म्हारै रूप री जोत सूं
रंग दियौ थारौ बागौ
केसरिया
कै इणी मिस
थारी सुगन्ध सूं हळाबोळ
रैवैला म्हारौ चित
ले थारी रीस
अंगेज लूं म्हैं?
अर थूं धारण करलै म्हारौ रंग।

म्है जाणूं कै इण जूण में
म्हैं अैड़ौ कीं नीं करियौ
जिणरौ जबाब अगन री झाळां नै देवणौ पड़तौ
पण लुगायां तौ करमी होवै राजा
तौ म्हारै करमां रौ दास
थनै कीकर देवूं?
थूं बाप करमौ
म्हारै करमां नै कीकर अंगेजतौ
वो म्हनै
हरम में बन्द करण सारूं आयौ हौ
थूं म्हनै आरसी में बन्द कर
परोस दीनी उण सांम्ही,
दोनूं ठौड़ चौखट है
दोनूं ठौड़ चौखट है
जड़ाव है
अर है बांधण रौ चाव।

म्हैं थारैं सारूं
हमेसा रैयी अेक ‘रूपाव’
म्हनै घर चाइजतौ हौ
थूं म्हनै दीनी
बावड़ी हबोळा लेवती
जिण मांय डूब जावै हाथी घोड़ा
पण जठै सूं पिणहारियां
हमेसा खाली जाया करै।

जे अलावदीन आयौ हौ
दूजै रै उकसायां
तौ थनै रीस क्यूं आई
थूं ई तौ आयौ हा
दूजै रै उकसायां
लेवण नै म्हनै।
म्हारी जूण में
थारौ अर अलावदीन रौ पलड़ौ
अेक सरीखौ ई है।

म्हनै जांण लेवणौ चाइजतौ
हथळेवौ जोड़ती बगत
कै म्हारौ औ रूप
अर म्हारा छत्तीस गुण
हमेसा उकसावैला दूजां नै
अर
दूजां रै उकसायां
दूजा ई आवैला
म्हारी जूण में।

म्हनै जांण लेवणौ चाइजतौ हौ
कै म्हैं
मरदां नै उकसावण रौ
अेक साधन हूं।
म्हारी साध ही
कै म्हैं बणूं साध्य
पण साधन कदेई
साध्य नीं बण सकै
औ म्हनैं जांण लेवणौ चाइजतौ हौ
पैली रात ई।

अगनी नै
कोई कद सूंपै
आपरी देह
पण जद भाई सूंप दै
बाप सूंप दै
धणी सूंप दै
तद कोई कांई करै?
म्हैं
फेरा खाया अगनी सूं
म्हनै
जकौ लेवण आयौ हौ
उणरै हियै ई
लागोड़ी ही लाय
आपरी पटरांणी रै बोलां री
यूं
अगन-अगन रै बिच्चै
होयौ हो अेक कौल।

पीढियां बखांणैला म्हरौ जस
जिण आपरौ पति धरम निभवण सारूं
सूंप दी आपरी देह अगनी नै
पण कोई नीं पूछैला
सवाल म्हारै धणी सूं
जिणरी पत राखण
मरणौ पड़ियौ म्हनै।