भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

औड़ी में / निशान्त

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 30 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह=धंवर पछै सूरज / नि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन में
जका डांगर
मारै हा अेक-दूजै रै सींग

पौ’री रात में
जुड़्या बैठ्या है
दरख्तां तळै भेळा

गायां गेर राखी है
नाड़ सुअरां ऊपर।