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धंवर पछै सूरज (कविता) / निशान्त

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आखै सियाळै
धंवर ई धंवर

जी दोरौ हुयो घणो
पण
इत्तो संतोष ई हुयो
कै तरसणो नीं पड़ियो
तावड़ै बैठण सारू ।

दस दिन री
धंवर पछै
आज थे निकळिया
तो लाग्यो-
बसंत
आयग्यो है ।