भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवण सारू / निशान्त

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:34, 9 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |अनुवादक= |संग्रह=आसोज मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरेक आदमी
अक्सर अपणै-आपनै
कमजोर गिणै
बा बात अळगी कै
पूरो आखतीजेड़ो
भड़कज्यै
अर भिड़ज्यै
पण अक्सर
सैंवतो रैवै चुपचाप
खैर आपां तो इन्सान हां
आपां रै तो देवतावां नै भी
याद दिरावण पर ई
याद आंवतो आप रो जोर
जियां कै हड़मान जी नै
तो इस्यै मांय जरूरत होवै
आदमी नै याद दिरावण री कै
जिस्यो नाड़ी तंत्र तेरो है
बिस्यो ई है आगलै रो
कम नीं है तूं भी किणी स्यूं ।