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डागदर रो घर / निशान्त

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अेक डागदर रै घरै म्हे
दिनूगै सात-आठ बजी
नांनियो दिखावण गया
बारै भारी काढती बाई
म्हानै बतायो कै
सा‘ब न्हावै
गरदै स्यूं बचण सारू
म्हे कमरै मांय आय‘र बैठ्या
बठै अंधेरो हो
खिड़क्यां-रोशनदानां मांय
ठूंस्या पड़्या हा अखबार
उडीक मांय
बैठ्यै रै मेरै
खाग्या माच्छर
पड़दै रै लारै आंगण मांय
आवै ही कींनै ई धांसी
सुण‘र
ठणक्यो मेरो माथो ।