भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीसै बीना / निशान्त

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:59, 9 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |अनुवादक= |संग्रह=आसोज मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आजकल
रोज जकी बस मांय
महैं आवूं घरे
बीं रो डरेवर
कीं सैंदो सो हुयर्यो है
बण आज म्हारै स्यूं
पचास रिपिया उधारा मांग्या
पण म्हैं तो उतावळ मांय
दिनूंगै घर स्यूं निकळती बखत
बटुओ ल्याणो ई भूलग्यो हो
नटतां थकां
म्हनै भौत सरम आई
स्यात डरेवर नै
म्हारै स्यूं ई बेसी ...
जियां म्हनै आई ही
दिनूंगै
अड्डै पर अेक सेंदै स्यूं मांगतां
उधार बीस रिपिया
ओ तो आछो हुयो कै
म्हैं कीं अणजाण डरेवर-कण्डक्टर री
बस मांय चढण स्यूं पैली
चेतग्यो
अर जेब सम्भाळ ली
नी तो पतो नीे
कित्ती फजीती हुंवती
पीसै बिना ।