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तूतनख़ामेन के लिए-26 / सुधीर सक्सेना
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सब कुछ है
पर घड़ी नहीं है
तूतन की कलाई में
रत्न हैं, आभरण हैं, कंगन हैं,
मणिबंध हैं, अंगूठियाँ हैं, बाजूबंद हैं
पर घड़ी नहीं है
एक भी रत्न-मंजूषा में ।
बहुत बड़ी ग़लती की तुमने
ग़लती की बहुत बड़ी तूतन !
अब भुगतो अनन्त-काल
अगर जागना ही था तो
फलाँ सदी में,
फलाँ वर्ष, फलाँ मास में,
फलाँ तारीख़ में
फलाँ बजे का
अलार्म लगाकर
सिरहाने
एक टिक-टिक करती
घड़ी तो रख ली होती
तुम जागते न जागते
वो उतने बजे घनघनाती ज़रूर
जितने बजे की चाबी भरी होती तुमने
जादू की डिबिया में
हठात ।