भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तूतनख़ामेन के लिए-29 / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:52, 19 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=काल को भी नहीं पता / सुधीर सक्सेन...)
अब कभी
जिओगे नहीं तुम,
कभी भी नहीं जिओगे
तुम तूतनख़ामेन !
एक भी बार नहीं
धड़केगा तुम्हारा हृदय,
एक भी बार नहीं
कँपकँपाएंगे तुम्हारे होंठ,
एक भी बार राजदण्ड नहीं
थामेंगे तुम्हारे हाथ,
एक भी क़दम नहीं चलेंगे अब
तुम्हारे पाँव ।
अब एक भी शिकन नहीं
आएगी तुम्हारे ललाट पर
अब एक भी बार नहीं उठेंगी
तुम्हारी मुंदी हुई पलकें,
अब एक बार भी
नहीं फड़केंगे तुम्हारे नासा-पुट ।
जिओगे नहीं तुम,
जिओगे नहीं
आसरा छोड़ो
काल का
तूतनख़ामेन !