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धन पशु धार्मिक हैं / संजय कुंदन

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धनपशुओं का धार्मिक होना
इतना स्वाभाविक था
कि किसी धन पशु के धार्मिक न होने पर ही
संदेह होने लगता था
अब तो कंपनियों के नाम भी
भगवान के नाम पर रखे जा रहे थे
लेकिन इसका मतलब यह नहीं
कि धन पशु धर्म भीरु भी थे
वे अध्यात्म की सीढिय़ों पर चढ़ रहे थे
तो इसका अर्थ यह नहीं था
कि उसका संसार से मोहभंग हो गया था
या वे ऊब गए थे धन बल से
वे कहते जरूर थे कि जीवन निस्सार है
लेकिन उनका पूरा ध्यान मुनाफे पर रहता था
वे कहते थे कि सादगी से रहो
पर उनका अपने ऊपर खर्च
जरा भी कम नहीं होता था
निरंतर पूजा-पाठ और सत्संग के जरिए
धन पशु बताना चाहते थे कि
जिसने इहलोक में अब तक मौज किया है
वही परलोक में भी राज करेगा
मतलब यह कि जिसके पास माल है
मोक्ष भी उसी का है ।