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समुद्री नमक / डेविड मेसन

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घास से उठती आभा चमकती है सांसारिकता की ढूह पर। विलीन हो जायेगी यह भी, पर क्या होगा यह सब शीघ्र?

एक पतंग धागे को सिर हिलाती है। एक बादल बुनता है उठती-गिरती लहरों के ऊपर, दूसरे बादल से जुड़ते हुए।

वे सब एक हुजूम की तरह आगे बढ़ते हैं, और आसमान एक क$फन बन जाता है सूरज के उस्तरे से कट कर। उसके बाद, कुछ भी करने को बाकी नहीं।

आत्मा, अगर सच में कोई आत्मा है, उन्मुख होती है प्रेम की तरफ, और जो भी उसे करता है संपूर्ण सागर अचल, उद्वेलित होता है

विचार-मंथन करता हुआ नया कहने को कुछ नहीं। दिन बना घंटों से, घंटे क्षणों से,

पर इनमें से भी कोई अपना नहीं। रेतीली हवा बाड़ों से होकर गुजरती है, घास की आभा मंद होती है पर यह भी तो क्षणभंगुर।