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द्वादश ज्योतिर्लिंग / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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1. ‘सौराष्ट्रे सोमनाथंच’
भारत राष्ट्र अखंड, जकर भू - खंड एक सौराष्ट्र
सोम याग जत युग-युगसँ छल चलित, विदित पर राष्ट्र
शिशु शशि भासित श्वि ज्योतिर्मय वसथि काठियाबाड़
क्षेत्र प्रभासक मन्दिर चन्दिर नहि कहिओ दृग आड़
कत लुंटाक क दल चढ़ि आयल लुटय देश अभिमान
सोमनाथ ओम् - नाद निनादित ज्योतिर्मय भगवान

2. ‘श्री शैले मल्लिकार्जुनम्’ -
द्रविड-सरित कृष्णाक पुलिन लग, अंबर, - चुंबी शंृग
विदित दक्षिणक जे कैलास अपर, श्रीशैल उतुंग
जतय दर्शनक हित बुध-वर्ग, विबुध स्वर्गहुसँ आबि
दुर्ग-दुर्गतिक तरण हेतु सुनबथि स्तति गीतो गावि
भक्ति-सूत्र मे गाँथि मल्लिका माला चढ़बिअ तात!
ज्योतिर्मय शिव - लिंग मल्लिकार्जुन नामेँ विख्यात

3. ‘उज्जयिन्यां महाकालम्’ -
उज्जयिनी अथवा अवन्तिका नगरी मालब देश
कालमापिका अद्यावधि माध्यमी ज्योतिषक शेष
काल कलन, विकलन अकालहिक महाकाल सदिकाल
क्षिप्रा तट पर क्षिप्रहि रहइछ क्षुद्रताक जंजाल
जनिक दर्शनहिसँ अकाल - मृत्युक विभीषिका दूर
ज्योतिर्मय जय काललिंग करु! भुक्ति मुक्ति दुहु पूर

4. ‘ओंकारम्-अमलेश्वरम्’ -
मालव खण्डहिँ मध्य भारतक खण्ड खण्डवा अंग
ज्योतिर्लिंग द्विशिख अमलेश्वर-ओंकारेश्वर संग
कर्म ज्ञान जनु संगत जत नर्मदा नदी काबेरि
मान्धाताक विदित नगरी तत बसथि युगल, युग ढेरि
ओंकारक संग बम्-बम् - हर-हर जयकारक जत सोर
भक्ति-भाव, श्रद्धा-आदर, नत-मस्तक लागिअ गोड़

5. ‘परल्यां वैद्यनाथंच’-
भारत भूमिक पूब कने पुनि उत्तर गिरि वन प्रांत
झारखंड शुचि चिता-भूमि जत भूत-प्रेत एकांत
पुजइछ लंकापति - थापित कैलास-वासि गिरिजेश
आगमविद जनइछ जनिका कामद शिव नित्य परेश
देव-असुर दुहु दलसँ पूजित ज्योतिर्मय जनि रूप
बाबा विदित वैद्यनाथे भव-रोगक वैद्य अनूप

6. ‘डाकिन्यां भीमशंकरम्’ -
सह्याद्रिक दुर्गम शिखर स्थिति निर्जन भूमि भ्यान
भीमशंकरक सदन, भूत - प्रेतादिक क्रीडा - स्थान
सेवित सतत डाकिनी शाकिनि संग समाज बसाय
भीम भयाकुल जनक अभयप्रद पदकेँ पकड़िअ जाय
जतय चन्द्रशेखर निज किरणेँ हरथि ताप निःशेष
वरद वरदवाहनक करिअ श्रद्धा-अभिषेक विशेष

7. ‘सेतुबन्धे तु रामेशम् -
दूर दक्षिणक देश सागरक लोल लहरि कल्लोल
भारतवर्षक ओर-छोर किछु पुबाहुते उतरोल
सेतु बन्धु जत शेष चिह्न एखनहुँ पाषाणी शृंग
जतय स्वयं दशवदन - निधनकारी प्रभु थापल लिंग
भेल सफल अभियान राम - अभिधान भुवन अभिराम
दरस-परस रस सफल जीवने, पद-रज करिअ प्रणाम

8. ‘नागेशं दारुकावने’ -
दक्षिण दूर-दबंग सदंग नगरमे दारुक कानन माँझ
नाग-विभूषित, भोग-रागसँ पूजित नित्य भोर ओ साँझ
भोग दानमे, योग ध्यानमे मुुक्ति प्रदानहुमे विख्यात
नागनाथ नागेश नटेश्वर रटिअ नाम शिव शशि अवदात
ज्योतिर्मय शिवलिंग सविष रहितहुँ निर्विष विषयक आभोग
अग अगना संगत रहनहु, करथि नित्य-नियमित शिव योग

9. ‘वाराणस्यां तु विश्वेशम्’ -
स्वयं अन्नपूर्णा भंडारे, जनि भैरव रखबारे
साक्षी स्वयं विनायक माधव मीत बसथि बगवारे
उत्तर वाहिनि हिमजा गंगा बहइछ शीतल धारे
काशी लोकोत्तर नगरी श्री विश्वनाथ दरबारे
मरण जतय भय हरण, बालु कण कनकहु अधिक अमोल
मुक्तिक मौक्तिक जत-तत भेटइछ बिनु ज्ञानहुँ बिनु मोल

10. त्र्यम्बकं गौतमी-तटे’ -
गोदावरी दक्षिण क गंगा विदित गौतमी तटे पुरा
पंचवटी निकटे वट-छाया शीतल हीतल जाय जुड़ा
सह्याद्रि क शुचि शिखर ब्रह्मगिरि ततय बसै छथि साप धरा
त्र्यम्बक ज्योर्तिलिंग महेश्वर हरइत पाप ताप निकरा
झाँकी आँकब त्रिलोचनक तत पहुँचि निहुछि माया-ममता
भुक्ति मुक्ति बिनु युक्ति सँजोगब, पायब पद लहि सुर-समता

11. ‘हिमालये तु केदारम्’ -
धवल हिमाचल सजल शृंग उतुंग विदित केदार
पच्छिम मन्दाकिनी सलिल सिंचित थल विशद-उदार
स्वयं ज्योति रूपेँ लिंगयत श्री केदार महान
जनिक पूर्व दिस बदरीनाथ विराजित छथि भगवान
खण्ड उत्तराश्रित शिव जाग्रत जगत जीव कल्यान
तनिक दर्शनेँ सफल करिअ सहजहिँ लोचन मन प्रान

12. ‘घुश्मेशं च शिवालये’ -
विन्ध्य पर्वत क पार आन्ध्रदेशक सीमा जत धाम
नगर इलापुर पुरातनक, अधुनातन बेरुल गाम
अति उदग्र अर्चित समग्र पृथिवीक ज्योति उदयन्त
लिंग रूप परमेश शिवक घृष्णेश्वर विदित उदन्त
घुश्मेश्वर क्यौ, घुसृणेश्वर क्यौ, नाम जपथि शुचि भाव
विपदा हरथि संपदा बितरथि, अति उदार अनुभाव