भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दक्षिणापथ / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:52, 17 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चित्रकूट केर घाट-बाट बसि रामगिरिहु सिर टेकि
आश्रम जतय जनक-तनया स्नानेँ पवित्र अभिषेक।।51।।
शीत-भीत कहुँ, थकित पथहु कहुँ सीता-कुण्ड नहाय
एखनहुँ व्यथा-कथा उछ्वासेँ धरनि नोर गरमाय।।52।।
झप लेब पंपा-पुष्कर अवगाहि ब्रह्म-पद टेक
नगर-डग र मल परस न निर्मल नर्मदाक जल सेक।।53।।
कृष्णा काबेरी गोदावरि वारि बिन्दु कय पान
शंकर रामानुज मधु बल्लभ आलवाड़ पद ध्यान।।54।।
मन्दिर-मन्दिर चढ़य तीर्थ - जल कुंड-कुंड जत पूत
झुंड-झुंड जुमि तीर्थ पथिक जत दर्शन गति अनुभूत।।55।।