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हमने पाया तो बहुत कम है बहुत खोया है / देवी नांगरानी

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हमने पाया तो बहुत कम है बहुत खोया है
दिल हमारा लबे-दरिया पे बहुत रोया है.


कुछ न कुछ टूटके जुड़ता है यहाँ तो यारो
हमने टूटे हुए सपनों को बहुत ढोया है


अरसा लगता है जो पाने में, वो पल में खोया
बीज अफ़सोस का सहरा में बहुत बोया है.


तेरी यादों के मिले साए बहुत शीतल से
उनके अहसास से तन-मन को बहुत धोया है


होके बेदार वो देखे तो सवेरे का समाँ
जागने का है ये मौसम, वो बहुत सोया है.


बेकरारी को लिये शब से सहर तक, दिल ये
आतिशे-वस्ल में तड़पा है, बहुत रोया है.


इम्तिहाँ ज़ीस्त ने कितने ही लिए हैं देवी
उन सलीबों को जवानी ने बहुत ढोया है.