पूछते हो तुम मुझसे
क्या चाहती हूँ मैं
मुझे नहीं पता यह
मुझे बस इतना पता है
कि ख़्वाब देखती हूँ मैं
कि ख़्वाब जी रहा है मुझे
और तैर रही हूँ मैं
इसके बादलों में
मुझे बस इतना पता है कि
प्यार करती हूँ मैं इंसान को
पहाड़ बागान समुद्र
जानते हैं कि बहुत से मुर्दा
रहते हैं मुझमें
आत्मसात करती हूँ मैं अपने ही
लम्हों को
जानती हूँ इतना ही
कि यह समय का खेल है
आगे-पीछे II
मूल जर्मन भाषा से प्रतिभा उपाध्याय द्वारा अनूदित