भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अमरता / देवी प्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 12 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= देवी प्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहुत हुआ तो मैं बीस साल बाद मर जाऊँगा
मेरी कविताएँ कितने साल बाद मरेंगी कहा नहीं जा सकता हो सकता है वे
मेरे मरने के पहले ही मर जाएँ और तानाशाहों के नाम इसलिए अमर रहें कि
उन्होंने नियन्त्रण के कितने ही तरीके ईज़ाद किए
मैंने भी कुछ उपाय खोजे मसलन यह कि
आदमी तक पहुँचने का टिकट किस खड़की से लिया जाए
एक भुला दिया गया कवि बहुत याद किए जाते शासक से बेहतर होता है
और अमरता की अनन्तता एक जीवन से बड़ी नहीं होती