भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नुस्खा / माशा कालेको

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:18, 14 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माशा कालेको |अनुवादक=अनिल जनविजय...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने डर को भगाओ
सब डरों के डर को ।
इन कुछ सालों के लिए
काफ़ी रहेगी रोटी
और आलमारी में कपड़े

मत कहो -- यह मेरा है
तुम्हें भी सब दूसरों ने दिया है ।
समय के इस दौर में रहो और देखो
तुम्हें कितना कम चाहिए ।
यहाँ पर रहो
और तैयार रखो सूटकेस ।

वे जो कहते हैं, सच है --
जो आने वाला होगा, आ जाएगा ।
दुख से गले मिलने न बढ़ो
जब दुख आएगा
शान्ति से उसके चेहरे को देखो
वह सुख की तरह गुज़र जाएगा ।

उम्मीद नहीं करो किसी चीज़ की
चिन्ता करो बस अपने रहस्य की
भाई भी धोखा देगा
जब उसे चुनना होगा ख़ुद को या तुझ को
बस अपनी छाया को ही साथ लो
सुदूर यात्रा में ।

अच्छी तरह साफ़ करो अपना घर
पड़ोसियों से मिलो-जुलो
बाड़ ठीक करो हँसी-ख़ुशी
गेट पर लगा दो घण्टियाँ
अपने घाव को भूल नहीं जाओ
अस्थाई शरणस्थली में ।

अपनी योजनाएँ फाड़ दो, दिमाग़ से काम लो
किसी चमत्कार की उम्मीद रखो
बड़ी योजना में शामिल है जो
लम्बे समय से

अपने डर को भगाओ
सब डरों के डर को ।


रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय