भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाँझ / सिल्विया प्लाथ
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:30, 18 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिल्विया प्लाथ |अनुवादक=रश्मि भा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गर्भाशय झंकृत करता है अपने बीज
चन्द्रमा ने अपदस्थ कर लिया ख़ुद को वृक्ष से और अब
उसके पास कहीं और जाने का स्थान नहीं
मेरी हथेली के परिदृश्य में कोई रेखाएँ नहीं
सभी राहें एकत्र हो तब्दील हो गई हैं एक गिरह में
मैं हूँ वह गिरह
मैं हूँ गुलाब जो तुम प्राप्त करते हो
यह देह
यह गजदन्त
अशुभ जैसे कि एक बच्चे की चीत्कार
मकड़ी की तरह, मैं बुनती हूँ दर्पण
मेरी छवि के लिए ईमानदार
जो और कुछ नहीं बस उत्सर्जित करता है रक्त
इसे चखो, गाढ़ा लाल
और मेरे वन
मेरी शवयात्रा
और यह पहाड़ी
और यह चमकती है शवों के चेहरे से
मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : रश्मि भारद्वाज