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ऊब / देवेन्द्र कुमार
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धूप-बन्द चेहरे
बोल दो हवा से
कुछ और देर ठहरे ।
चाहे - अनचाहे
छूटे चौराहे
पीले आसार
प्यार के पठार हुए
आँखों के
बहरे ।
ऊब ने रची हैं
कुछ अच्छी कविताएँ
गाँठ में समय हो
आ बैठो !
सुनाएँ
तारे अन्धेरे के बच्चे
चितकबरे ।