Last modified on 30 जुलाई 2015, at 19:27

आँगन की अल्पना सँभालिए / कुँअर बेचैन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:27, 30 जुलाई 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दरवाज़े तोड़-तोड़ कर
घुस न जाएँ आंधियाँ मकान में,
आँगन की अल्पना सँभालिए ।

आई कब आँधियाँ यहाँ
बेमौसम शीतकाल में
झागदार मेघ उग रहे
नर्म धूप के उबाल में
छत से फिर कूदे हैं अँधियारे
चन्द्रमुखी कल्पना सँभालिए ।

आँगन से कक्ष में चली
शोरमुखी एक खलबली
उपवन-सी आस्था हुई
पहले से और जंगली
दीवारों पर टँगी हुई
पँखकटी प्रार्थना सँभालिए ।