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अपनी तो हर आह एक तूफ़ान है / शैलेन्द्र

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अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
क्या करे वो जान कर अंजान है -
ऊपर वाला जान कर अंजान है

अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है
ऊपर वाला जानकर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है

अब तो हँसके अपनी भी क़िस्मत को चमका दे
कानों में कुछ कह दे जो इस दिल को बहला दे
ये भी मुशकिल है तो क्या आसान है
ऊपर वाला जान कर अंजान है ...

सर पे मेरे तू जो अपना हाथ ही रख दे
फिर तो भटके राही को मिल जाएँगे रस्ते
दिल की बस्ती बिन तेरे वीरान है
ऊपर वाला जानकर अंजान है ...

दिल ही तो है इस ने शायद भूल भी की है
ज़िन्दगी है भूल कर ही राह मिलती है
माफ़ कर बन्दा भी इक इंसान है
ऊपर वाला जान कर अंजान है
अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है