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साथ जीने की सज़ा / संतलाल करुण

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चाहतों ने गुलजमीं पे चाँदनी जब छा दिया
आहटों ने बढ़ तराना प्यार का तब गा दिया |

हाथ कैदी की तरह सहमे हुए थे कैद में
कैदख़ाने में किसी ने दिल थमा बहका दिया |

पाँव में थीं बेड़ियाँ, बेदम नज़र, मंजिल न थी
हौसले ने वक्त पे सिर से कफ़न फहरा दिया |

होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े
फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |

मातमी अंदाज़ में लोगों का जमघट था लगा
साथ जीने की सज़ा ने मौत को झुठला दिया |