भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ, बहन, बेटी के आँसू / संतलाल करुण

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:44, 4 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतलाल करुण |अनुवादक= |संग्रह=अतल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ, बहन, बेटी के आँसू पे यहाँ रोता है दिल
रोज़ लुटती अस्मतें, क़त्लों का ग़म ढोता है दिल |

आबरू को उम्रदारों ने भी बदसूरत किया
मर्दों का बचपन भी है बदकार बद होता है दिल |

शाहो-साहब औ’ गँवारों सब में बद शह्वानीयत
सब की आँखों में चढ़ा शर्मो-हया खोता है दिल |

है हुक़ूमत बेअसर बेख़ौफ़ हैं ज़ुल्मो-ज़बर
हर घड़ी हर साँस जैसे ख़ार पे सोता है दिल |

आज भी शै की तरह हैं घर या बाहर औरतें
बेरहम इंसाफ़ भी तेज़ाब से धोता है दिल |